आर्य और काली छड़ी का रहस्य-44
अध्याय-15
काली छड़ी की मौत
भाग-2
★★★
आर्य को बूढ़ी औरत यानी की काली छड़ी की आखिरी इच्छा का इंतजार था। उसने मरने से पहले आर्य को कहा था कि वह उसकी एक आखिरी इच्छा पूरी कर दें, और आर्य ने भी जवाब दिया था कि वह उसकी आखिरी इच्छा पूरी करेगा।
कुछ देर तक ना बोलने पर आर्य दुबारा बोला “बताओ... क्या है तुम्हारी आखिरी इच्छा? क्या चाहती हो तुम अपनी आखिरी इच्छा के रूप में?”
बूढ़ी औरत ने छत की तरफ देखना बंद किया और धीरे धीरे चलते हुए कुर्सी पर जाकर बैठ गई। कुर्सी पर बैठते हुए उसने कहा “मैं चाहती हूं तुम ऊपर छत से मेरे लिए उस चीज का एक प्याला ला दो जिसे इंसान बड़े शौक से पीते हैं।” वह वाइन की बात कर रही थी।
आर्य ने अपनी आंखों को मरोड़ा। “क्या यह है तुम्हारी आखिरी इच्छा... तुम मरने से पहले वाइन पीना चाहती हो।”
“हां” बूढ़ी औरत ने जवाब दिया।“मैंने उसका इस्तेमाल पहले भी किया था। उसे पीने से दर्द जैसे एहसास दूर हो जाते हैं। दिमाग भी शांत रहता है। इसलिए मुझे मरने से पहले वह चाहिए।”
आर्य ने अपने कंधे उचका दिए “ठीक है। मैं लेकर आता हूं।” वह बोला और ऊपर की तरफ चल पड़ा। उसने सीढ़ियां पार की, दूसरी मंजिल को पार किया और आखिर में तीसरी मंजिल पर पहुंचा। वहां उसने आलीशान दिखने वाले कमरे का दरवाजा खोला और सीधे मेज की ओर बढ़ा। मेज के पास जाकर उसने वाइन की बोतल उठाई और उसे गिलास में ढाला। जब गिलास आधा भर गया तो वह उसे उठाकर नीचे की तरफ चल पड़ा। वह दूसरी मंजिल पर पहुंचा और उसके बाद सिढिया नीचे उतरने लगा। लेकिन यहां जैसे ही उसने सामने मेज की तरफ देखा उसे वहां बूढ़ी औरत नहीं दिखी। वह वहां से लापता थी।
आर्य यह देखते ही हैरान हो गया। वह तेजी से नीचे उतरा और आकर पूरे हाॅल को देखा। उसे बूढ़ी औरत वहां कहीं भी नहीं दिखी। वह तुरंत दरवाजे की तरफ़ बढ़ा। उसने दरवाजा खोला और बंग्ले के बाहर आ गया। बाहर आकर उसने चारों ही तरफ देखा। बूढ़ी औरत दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रही। आर्य परेशान हो उठा। उसने अपने बालों में हाथ फेरा और खुद से ही कहा “अब यह बूढ़ी औरत आखिर क्या करना चाहती है.... कहीं यह किसी तरह की चाल तो नहीं चलने वाली जो उसे बचा सके... मुझे उसकी आखरी इच्छा वाली बात में नहीं आना चाहिए था। मैंने सभी बातों पर सावधानी बरती मगर आखरी वाली बात पर मात खा गया।”
इतना कहकर वह पीछे मुड़ा और पीछे मुड़ते ही उसे ढेर सारी मक्खियां दिखाई दी। सारी मक्खियां बंगले के इर्द गिर्द बने छोटे-छोटे अजीब से छदों से बाहर निकल रही थी। चंद ही क्षणों में ढेर सारी मक्खियां निकलकर बंगले के ऊपर मंडराने लगी।
उनकी संख्या इतनी ज्यादा थी कि एक बार के लिए बंगले के ऊपर किसी उड़ती हुई छत जैसे दृश्य का निर्माण हो गया। तभी घर का दरवाजा खुला और उससे बूढ़ी औरत लकड़ी के डंडे के सहारे चलती हुई बहार आई जिसके छोर पर कुल्हाड़ी जैसा लोहे का औजार लगा हुआ था। अब उसकी चाल में तेजी थी।
वह चलते-चलते बोली “माना कि अब मेरे बचने की कोई उम्मीद नहीं। लेकिन मैं इतनी आसानी से नहीं मरने वाली। मरने से पहले मैं कम से कम शैतान की मौत बनने वाले को तो खत्म करके ही रहूंगी। यह मेरा शैतान के लिए एक तोहफा होगा जो मैं उसे अपनी मौत के साथ उन्हें दूंगी। मेरी मौत, और मेरे हाथों तुम्हारी, यह शैतान को हमेशा हमेशा के लिए अमर कर देगी।”
वह चलते चलते काफी आगे आ गई। आगे आते ही उसने अपने दोनों हाथ हवा में फैला दिए। ऐसा करते ही ऊपर छत पर मंडराने वाली मक्खियां उसकी और आने लगी। सारी की सारी मक्खियां उसके पास आते ही उसके शरीर को अलग ही आकार देने लगी। उसकी कुबड़ जैसी पीठ के दोनों ओर मक्खियां पंखों का निर्माण कर रही थी। वहीं उसका झुका हुआ शरीर सीधा हो रहा था। वह दिखती तो पहले ही काफी बुरी थीं लेकिन अब वह और भी भयानक हो गई थी। जल्द ही मक्खियों का उसके पास आना बंद हुआ और उसने अपनी आखरी आकृति ले ली। आख़िर में वह भी किसी मक्खी की तरह दिखने लगी थी। बड़ी और भयानक मक्खी की तरह जिसके एक हाथ में कुल्हाड़ी जैसा दिखने वाला हथियार था। कुल्हाड़ी और उस हथियार में बस इतना ही फर्क था की कुल्हाड़ी का डंडा छोटा होता है, जबकि उसका डंडा काफी लंबा था।
अचानक उसकी पीठ के पीछे बने पंखों ने फड़फड़ाना शुरू किया और वह ऊपर हवा में उठने लगी। आर्य के पास इस वक्त लड़ने के लिए कुछ नहीं था। उसके पास अपनी रोशनी वाली तलवार भी नहीं थी जो उस बूढ़ी औरत के हमले का जवाब दे सकती। खुद के बचाव के लिए आर्य ने अपनी मूठियां कस कर खुद को नीचे झुका लिया। उसने दोनों ही हाथों की मुठिया सामने की तरफ कर ली थी जिसे वह कोई जबाबी कार्यवाही कर सकें।
बूढ़ी औरत जमीन से कुछ फिट ऊपर उठी और वहां अपनी कर्कश आवाज में कहा “भविष्यवाणी में शैतान की मौत बने लड़के, सावधान हो जाओ, क्योंकि अब तुम्हारी मौत तुम्हें लेने आ रही है।” इतना कह कर उसने कुल्हाड़ी को हवा में उठा लिया और वह तेजी से आर्य की तरफ आने लगी। जैसे ही वह आर्य के पास आई उसने कुल्हाड़ी को हवा से उसकी और घुमा दिया।
ऐन मौके पर आर्य ने खुद को और नीचे झुका लिया और उसके ठीक बाद सामने की ओर गुलाटी खा कर बूढ़ी औरत के इस हमले से बच गया। आर्य गुलाटी खाकर अपनी जगह बदल चुका था तो बूढ़ी औरत की कुल्हाड़ी का बार खाली जमीन पर पड़ा। उसने तुरंत खुद को संभाला और वहीं से उड़ती हुई दूसरी तरफ चली गई। वहां वह घूम कर फिर से आर्य के सामने हो गई। आर्य और बूढ़ी औरत एक बार फिर से एक दूसरे के आमने सामने खड़े थे।
बूढ़ी औरत ने दुबारा अपनी कुल्हाड़ी को हवा में घुमाकर ऊपर कर लिया। इसके बाद वह तेजी से आई और कुल्हाड़ी का वार आर्य पर किया। आर्य ने इस हमले के बचाव के लिए उसी रणनीति का इस्तेमाल किया जिसकी वजह से उसने पहले हमले से बचाव किया था। वह नीचे झुका, और जैसे ही बूढ़ी औरत उसके पास आई उसने दूसरी और गुलाटी खा ली। दूसरी ओर जाने के बाद आर्य खुद को संभाल कर वापस खड़ा हो गया। उसने खुद से कहा “अगर मैं इसी तरह से बचता रहा तो इसे कभी खत्म नहीं किया जा सकता। मुझे इसे खत्म करने का कोई रास्ता ढूंढना होगा।”
काली छड़ी ( बूढ़ी औरत) फिर से तीसरा हमला करने के लिए तैयार हो गई। लेकिन इस बार आर्य ने बचाव के लिए अपने इस्तेमाल करने वाले तरीके को बदला। जैसे ही बूढ़ी औरत उसके पास आने लगी उसने अपनी आंखें बंद की और आंखें खोल कर अपनी तेज चलने वाली क्षमता का इस्तेमाल किया। पलक झपकते ही बूढ़ी औरत के उसके पास आने से पहले ही वह तेज गति से दूसरी ओर चला गया था। यह देखकर बूढ़ी औरत हैरान हुई। उसके मुंह से निकला “ इसे अलग ताकतों से भी नवाजा गया है। तभी भविष्यवाणी में मजबूती दिखाई पड़ती है। लेकिन चाहे इसके पास कितनी भी ताकते क्यों ना हो, मैं इसे खत्म करके ही रहूंगी।”
वही आर्य खाली मैदान में तकरीबन इतनी दूर चला गया था की बूढ़ी औरत के उस तक पहुंचने से पहले वह किसी अच्छी योजना के बारे में सोच सके।
वहां जाकर वह सोचने लगा “आखिर कौन सा तरीका ऐसा है जिससे इस बूढ़ी औरत को खत्म किया जा सके। अगर यहां मेरे पास तलवार या कोई और हथियार होता तो शायद इस से लड़ना आसान हो जाता। मगर मेरे पास ऐसा कुछ भी नहीं है।” इतना सोच कर वह वापस बंगले की तरफ देखने लगा। वह बूढ़ी औरत उसकी ओर आने लगी थी। अचानक बंगले की तरफ देखते ही उसके दिमाग में कोई विचार आया। वह बोला “मेरे ख्याल से सिर्फ बूढ़ी औरत को खत्म करना ही काफी नहीं है, इसके बंगले का नामोनिशान भी मिटाना चाहिए। इसके घर में मंत्र वाली ऐसी किताबें हैं जिनका कल को कोई भी किसी बुरे काम के लिए इस्तेमाल कर सकता है। और मैं जानता हूं मेरे पास ऐसा कौन सा तरीका है जिसे बूढ़ी औरत भी मर जाएंगी, और उसकी किताबों का नामोनिशान भी नहीं बचेगा।”
इतना कहकर वो बूढ़ी औरत के अपने पास आने का इंतजार करने लगा। जैसे ही बूढ़ी औरत उड़ते हुए उसके पास आई आर्य ने अपनी आंखें बंद कर फिर से अपनी तेज गति का इस्तेमाल किया और बंगले की तरफ चल पड़ा। बूढ़ी औरत ने आर्य को बंगले की तरफ जाते हुए देखा तो वह पूरी तरह से जुंझला उठी।
उसने अपने हाथों को अजीब सी मुद्रा में करते हुए कहा “यह लड़का अब और क्या करने जा रहा है... इसकी खास क्षमता मेरे लिए मुसीबत बन रही है। अब यह बंगले में भी जा रहा है, मुझे इसके इरादे कहीं से भी ठीक नहीं लग रहे।”
आर्य के बंगले में जाने के बाद बूढ़ी औरत ने भी बंगले की तरफ जाना शुरू कर दिया। मगर उसकी बंगले की ओर जाने की गति आर्य की गति से काफी कम थी।
वहीं दूसरी तरफ आर्य सीधे बंगले में घुसा और अपनी तेज गति के साथ तीसरी मंजिल पर चला गया। तीसरी मंजिल पर उसने सीधे ही उन दो अगीठीयों की तरफ देखा जिनमें आग जल रही थी।
आर्य जलती हुई आग को देखकर बोला “इंसानों की चीजो का शौक रखने वाले को अब इंसानों की चीजें महंगी पड़ने वाली हैं।” फिर उसने घुमाकर अपने चेहरे को वाइन की बोतल की तरफ किया। “इन लोगों को नहीं पता अगर इंसानों की चीजें लजीज है तो इनके काफी सारे नुकसान भी है।”
उसने तुरंत अंगीठी के पास जा कर एक जलती हुई लंबी लकड़ी को उठाया और कमरे की जलने वाली चीजों को आग लगाने लगा। उसने वहां बाथ टब वाले लाल रंग के पर्दे को आग लगाई, गद्देदार बेड को आग लगाई, इसके बाद वाइन की बोतल को उठाया और सीधे बेसमेंट की तरफ चल पड़ा।
बेसमेंट में आते ही उसने वहां मौजूद किताबों के ढेर को देखा। इसके बाद वाइन की बोतल खोली और उन्हें नीचे की किताबों पर गिराने लगा। किताबों पर गिराने के बाद उसने उन्हें आग के हवाले कर दिया। वाइन और कागज की किताब होने की वजह से उन्हें आग पकड़ने में ज्यादा देरी नहीं लगी।
जल्द ही पूरा बेसमेंट पीले रंग की आग से भर गया। घर का फर्नीचर और दूसरी काफी चीजें लकड़ी की बनी हुई थी तो आग उस तक भी फैलने लगी।
बेसमेंट को आग लगाने के बाद आर्य ऊपर हाॅल में आ गया। वहां उसे बूढ़ी औरत का इंतजार था। ताकि वह उसका भी आखरी क्रिया कर्म कर सके। उसने अपनी आग वाली लकड़ी को पीठ के पीछे कर लिया और दरवाजे के खुलने का इंतजार करने लगा।
इस मौके पर आर्य की आंखों में अलग ही तरह की चमक थी। ऐसे लग रहा था जैसे उसकी चमक कह रही हो बहुत हुआ भागने भगाने का खेल। अब और नहीं है। अब उसे सब कुछ खत्म करना है। अब उसे बूढ़ी औरत को मारना है। यानी कि उसे काली छड़ी को मारना है।
★★★